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Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता को 26 हफ्ते के बाद अबॉर्शन की दी अनुमति

Delhi High Court: जस्टिस ने कहा कि कोर्ट उसके जीवन के अधिकार को और अधिक ठेस पहुंचाए जाने की कल्पना नहीं कर सकती है और अगर उसे मातृत्व के कठिन कर्तव्यों को निभाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे मानसिक और शारीरिक आघात से गुजरना होगा और यह अकल्पनीय है।

High Court of Delhi- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO High Court of Delhi

Highlights

  • कम उम्र में मातृत्व का भार उठाने के लिए नहीं कर सकते मजबूर
  • प्रेग्नेंसी की अवधि 25 सप्ताह और 6 दिन है।
  • DNA टेस्ट के लिए भ्रूण को संरक्षित करने का निर्देश

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता को 26 हफ्ते के बाद अबॉर्शन कराने की अनुमति दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर उसे कम उम्र में मातृत्व का भार उठाने के लिए मजबूर किया गया तो उसकी दुख और पीड़ा और बढ़ जाएगी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता को प्रेग्नेंसी से गुजरने के लिए मजबूर करना उसकी आत्मा को पूरी तरह से झकझोर देगा और उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर और अपूरणीय क्षति होगी।

कोर्ट ने प्रेग्नेंसी को खत्म करने की याचिका की स्वीकार

जस्टिस ने कहा कि कोर्ट उसके जीवन के अधिकार को और अधिक ठेस पहुंचाए जाने की कल्पना नहीं कर सकती है और अगर उसे मातृत्व के कठिन कर्तव्यों को निभाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे मानसिक और शारीरिक आघात से गुजरना होगा और यह अकल्पनीय है। अदालत ने याचिकाकर्ता की प्रेग्नेंसी को समाप्त करने की याचिका को स्वीकार कर लिया और संबंधित अस्पताल को DNA टेस्ट के लिए भ्रूण को संरक्षित करने का निर्देश दिया, जिसकी घटना से संबंधित आपराधिक मामले में जरूरत होगी। 

मेडिकल बोर्ड ने दी अपनी रिपोर्ट

मेडिकल बोर्ड ने 16 जुलाई की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि याचिकाकर्ता की उम्र लगभग 13 वर्ष और प्रेग्नेंसी की अवधि 25 सप्ताह और 6 दिन है। साथ ही कहा था कि 24 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंसी में, कानून केवल भ्रूण संबंधी असामान्यताओं के मामले में ही अबॉर्शन की अनुमति देता है।

हाईकोर्ट ने रेप पीड़िता को दी राहत

कोर्ट ने 19 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘अगर उसे कम उम्र में मातृत्व का भार उठाने के लिए मजबूर किया गया तो उसका दुख और पीड़ा और बढ़ जाएगी।’’ कोर्ट ने साफ किया कि यदि अबॉर्शन की प्रक्रिया के दौरान, मेडिकल बोर्ड और डाक्टरों को पता चलता है कि याचिकाकर्ता के जीवन को खतरा है, तो उनके पास अबॉर्शन की प्रक्रिया को रद्द करने का अधिकार होगा।