नई दिल्ली: साल 2005 के सत्यम-लिबर्टी सिनेमा बम विस्फोट मामले में दिल्ली की एक अदालत ने कथित आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सदस्य होने के आरोपी को बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस इस मामले को संदेह से परे साबित करने में बुरी तरह विफल रही है।
एडीशनल सेशन जज धर्मेंद्र ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपनी टेलीफोन पर हुई बातचीत में 'प्लॉट', 'खेत', 'फसल', 'पानी' आदि जैसे सामान्य शब्दों का इस्तेमाल किया था. "संभावना और संदेह की बिनाह पर किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा साधारण से शब्दों की गलत व्याख्या और उसके 'अति उत्साही दृष्टिकोण' के कारण सरल शब्दों से इंकार नहीं किया जा सकता है"।
न्यायाधीश ने कहा, "मेरा विचार है कि अभियोजन पक्ष के बयान पर संदेह दिखाई देता है और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूत आरोपी त्रिलोचन सिंह को धारा 18 (आतंकवादी कृत्यों की साजिश), यूएपीए की धारा 20 और शस्त्र अधिनियम की धारा के तहत दंडनीय अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अदालत ने ये भी कहा कि पुलिस यह साबित करने में बुरी तरह विफल रही कि आरोपी बब्बर खालसा इंटरनेशनल का सदस्य था।
गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 2005 में सत्यम सिनेमा और लिबर्टी सिनेमा बम विस्फोटों की जांच के तहत ड्राइवर त्रिलोचन सिंह को 2007 में गिरफ्तार किया था और दावा किया था कि आरोपी पंजाब में आतंकवाद को दोबारा हवा देने की कोशिश कर रहा था। पुलिस के अनुसार, नौ लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से आठ ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था।
अदालत ने यह भी कहा कि त्रिलोचन को यूएपीए की धारा 18 (आतंकवादी कृत्यों की साजिश) के तहत अपराध के लिए केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि अन्य आरोपियों को भी दोषी ठहराया गया था। न्यायाधीश ने कहा, "आरोपी के मामले में स्वतंत्र रूप से उसके गुण-दोषों के आधार पर निर्णय लेने की आवश्यकता है और उसे केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि अन्य सह-आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है।"