नई दिल्ली: सरकार ने नेस्ले इंडिया के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए मैगी बनाने वाली स्विट्जरलैंड की कंपनी के खिलाफ वर्ग विशेष की ओर से दावा क्लास एक्शन दाखिल किया। इसमें कंपनी से कथित रूप से अनुचित व्यापार व्यवहार में संलिप्तता, गलत जानकारी देने और गुमराह करने वाले विग्यापन दिखाने के आरोप में 640 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग की गई है।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने करीब तीन दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण कानून में एक प्रावधान का पहली बार इस्तेमाल करते हुए किसी कंपनी के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग एनसीडीआरसी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है।
नेस्ले की तरफ से बाजार से मैगी नूडल्स को वापस लिए जाने के कई सप्ताह बाद यह कदम उठाया गया है। मैगी में सीसे की अत्यधिक मात्रा तथा एमएसजी मोनोसोडियम ग्लुटामेट पाए जाने के आरोपों के कारण बाजार से उत्पादन को वापस लेना पड़ा। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा, हमने इससे पहले मैगी मामले में एनसीडीआरसी के समक्ष नेस्ले इंडिया के खिलाफ शिकायत की सिफारिश की थी। अंतत: हमने शिकायत दर्ज कराई है।
उन्होंने सरकार की तरफ से मांग की गई दंडात्मक कार्रवाई के बारे में कुछ नहीं बताया लेकिन कहा कि संसद में कल पेश नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक से उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान प्रणाली में मजबूती आएगी। नेस्ले इंडिया के प्रवक्ता ने इस बारे में कोई टिप्पणी करने से मना करते हुए कहा कि कंपनी को इस बारे में कोई सूचना नहीं मिली है।
हालांकि सूत्रों ने कहा, हमने मैगी मामले में उपभोक्ता संरक्षण कानून की धारा 12 1-डी के तहत एनसीडीआरसी में नेस्ले इंडिया के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। हमने करीब 640 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। सूत्रों के अनुसार, मैगी नूडल्स में एमएसजी पाए जाने के बावजूद कंपनी का कहना है कि उसने एमएसजी मोनोसोडियम ग्लुटामेट नहीं मिलाया। कंपनी पर गुमराह करने वाले विग्यापन देने का आरोप है जिसमें कहा जाता था कि मैगी नूडल्स स्वास्थ्यवद्र्धक है।
आमतौर पर उपभोक्ता ही एनसीडीआरसी में शिकायतें दर्ज कराते हैं, लेकिन इस कानून की एक धारा में सरकार के लिए भी शिकायत दर्ज कराने की व्यवस्था है। पहली बार सरकार उपभोक्ता संरक्षण कानून की धारा 12 1-डी के तहत शिकायत दर्ज कराई हैं। उल्लेखनीय है कि जून में खाद्य सुरक्षा नियामक एफएसएसएआई ने मैगी के नमूने में सीसे की अधिक मात्रा पाए जाने के बाद इसे खपत के लिहाज से असुरक्षित और खतरनाक बताते हुए प्रतिबंध लगा दिया था।