डिजिटल इंडिया की सफलता के लिए सरकार को ढूंढने होंगे इन सवालों के जबाव
नई दिल्ली: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से देश में 4.5 लाख करोड़ के निवेश का वादा, 18 लाख नौकरियों के मौके, भारत और इंडिया के बीच का फासला खत्म करने का सपना और अगले पांच वर्षो
नई दिल्ली: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से देश में 4.5 लाख करोड़ के निवेश का वादा, 18 लाख नौकरियों के मौके, भारत और इंडिया के बीच का फासला खत्म करने का सपना और अगले पांच वर्षो में 100 करोड़ लोगों को डिटीजल साक्षर किए जाने का लक्ष्य। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषण और देश-विदेश से जुटे 400 CEOs की मौजूदगी में आयोजित भव्य कार्यक्रम के जरिए जनता तक यही संदेश पहुंचाना चाहते थे।
सही मायने में समझिए तो डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का असली लक्ष्य जनता से सरकार का सीधा संवाद साधने, सरकारी तंत्र में पारदर्शिता लाने और सरकार की योजनाओं को सीधे जनता तक पहुंचाने का है। लेकिन डिजिटल इंडिया की इमारत खड़ी करने के लिए देश में इंटरनेट की नींव का मजबूत होना पहली शर्त है।
गूगल में इंटरनेट कंनडीशन इन इंडिया (Internet condition in India) लिखकर बस क्लिक कर दीजिए, पलक झपकते ही आपको डिजिटल इंडिया का सपना दूर लगने लगेगा। आंकड़े बोलते हैं कि इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता के मामले में 166 देशों की सूची में हम 129वें स्थान पर हैं।
सवा सौ करोड़ से ज्यादा जनसंख्या (1,267,401,849) वाले राज्य में अभी 25 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता (243,198,922) भी नहीं हैं। जबकि इस योजना में लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 100 करोड़ लोगों को साक्षर करने का है।
देश में औसत इंटरनेट स्पीड अभी 1 से 2 MBPS की है जबकि हांगकांग और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में इंटरनेट की औसत स्पीड दोहरे अंकों में है।
3G के महंगे टैरिफ के कारण देश की जनता 2G छोड़ने से कतरा रही है। देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं में अब भी ज्यादा उपभोक्ता 2G आधारित ही हैं। नीलामी में महंगे बिके स्पैक्ट्रम आने वाले दिनों में भी यह उम्मीद नहीं बंधने देते की टैरिफ की दरें नीचे आएंगी।
पिछले महीने इरिक्सन की ओर से कराए गए सर्वे में 48 फीसदी लोग यह मानते हैं कि 2G और 3G स्पीड में कोई अंतर नजर नहीं आ रहा है। यह हाल बड़े शहरों का है अभी टियर 2 और टियर 3 शहरों की बात छोड़ दीजिए।
दुनिया के अन्य मुल्कों में जब इंटरनेट की औसत स्पीड 20mbps के आगे निकल चुकी है तब देश अभी 4G के लॉन्च होने का इंतजार कर रही है। लॉन्च के बाद भी यह आम आदमी की जद में होगा या नहीं यह अलग ही मसला है।
नेट न्यूट्रलिटी जैसे मुद्दों पर टेलीकॉम कंपनियों की बार्गेनिंग पावर (मोल भाव क्षमता) बहुत ज्यादा है। ऐसे में अगर नेट न्यूट्रलिटी के साथ समझौता हुआ, जैसी कि ट्राई की अनुशंसा थी, तो डिजिटल इंडिया के मिशन को गहरा झटका लग सकता है।
डिजिटल इंडिया के पीछे सरकार की मंशा बेशक बहुत अच्छी है। लेकिन मजबूत इमारत खड़ी करने का सपना देने से पहले नींव को मजबूत कर लेना जरूरी है।