पटना: कांग्रेस ने मंगलवार को दावा किया कि बिहार में बीजेपी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू के बीच मतभेद उस स्थिति में पहुंच चुके हैं, जिसका समाधान मुश्किल है। पार्टी ने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद बिहार में बड़ी उथल-पुथल होने की भविष्यवाणी की। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (AICC) के मीडिया पैनल में शामिल विधान परिषद सदस्य प्रेम चंद्र मिश्रा ने बीजेपी के कुछ नेताओं द्वारा नीतीश कुमार पर हाल-फिलहाल में किए गए हमलों का हवाला देते हुए यह दावा किया।
मिश्रा ने आरोप लगाया कि बीजेपी ‘संख्या बल के लिहाज से ज्यादा मजबूत स्थिति में होने के बावजूद राज्य में अपना मुख्यमंत्री न होने के कारण अपमानित महसूस करती है।’ मिश्रा ने सासाराम से बीजेपी सांसद की विवादित टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा, ‘छेदी पासवान की टिप्पणी पर गौर फरमाएं, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री में सत्ता की इतनी भूख है कि वह दाऊद इब्राहिम से भी हाथ मिलने से नहीं चूकेंगे।’ पासवान ने राष्ट्रीय राजधानी में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और जेडीयू के बीच विवाद को लेकर पत्रकारों के सवालों के जवाब में यह टिप्पणी की थी।
2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल होने वाले पासवान ने यह भी कहा था कि विधानसभा चुनाव में जेडीयू के निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद मुख्यमंत्री के रूप में वापसी करने में नीतीश कुमार की मदद करके उनकी पार्टी ने ‘भूल’ की है। पासवान पहले जेडीयू का हिस्सा थे। वह नीतीश कुमार की कैबिनेट में मंत्री भी थे। हालांकि, लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए उनके नाम पर विचार न किए जाने के विरोध में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
कांग्रेस नेता ने एक फेसबुक पोस्ट में जायसवाल द्वारा लगाए गए आरोपों का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य में शाहनवाज हुसैन जैसे पार्टी के मंत्री ‘संपूर्ण कैबिनेट से सहयोग’ के अभाव में अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। उनका इशारा मुख्यमंत्री और जेडीयू की ओर माना जा रहा था। जायसवाल ने जेडीयू के इस तर्क को भी खारिज कर दिया था कि राज्य को विशेष दर्जा सहित अन्य मामलों में केंद्र के अधिक सहयोग की जरूरत है। बीजेपी नेता ने दावा किया था कि बिहार को पहले से ही महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के मुकाबले अधिक केंद्रीय सहायता मिल रही है, जो जनसंख्या के लिहाज से लगभग समान आकार के थे।
मिश्रा ने कहा, ‘मुख्यमंत्री के खिलाफ विरोध की लहर विपक्ष द्वारा नहीं, बल्कि सत्ता में बैठे उनके सहयोगियों द्वारा है। यह अवसरवाद और सत्ता को लेकर दोनों दलों की लालसा का सूचक है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में कुछ भी ठीक नहीं है। हमें बिहार में निश्चित रूप से राजनीतिक अस्थिरता नजर आ रही है। यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी। मध्यावधि चुनाव भी हो सकते हैं। यूपी चुनाव के बाद तस्वीर और साफ हो जाएगी।’