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Hindi News बिहार जब से 'चाचा-भतीजा' साथ आए 3 में से 2 उपचुनाव हारे: प्रशांत किशोर का तेजस्वी-नीतीश पर तंज

जब से 'चाचा-भतीजा' साथ आए 3 में से 2 उपचुनाव हारे: प्रशांत किशोर का तेजस्वी-नीतीश पर तंज

प्रशांत किशोर ने सवालिया लहजे में कहा कि तेजस्वी यादव को राजनीति की कितनी समझ है? 2015 में विधायक बने इससे पहले इनको कौन जानता था? बिहार के जनता ने इनको नहीं चुना है।

prashant kishor- India TV Hindi Image Source : PTI (FILE PHOTO) प्रशांत किशोर

मोतिहारी: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने शुक्रवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर जोरदार निशाना साधते हुए कहा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के बिना तेजस्वी यादव कुछ भी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जब से चाचा-भतीजा (नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव) सत्ता में आए हैं तब से तीन उपचुनाव हुए हैं, जिसमे दो में इन्हें हार का सामना करना पड़ा है। अपनी जन सुराज पदयात्रा के 69 वें दिन पत्रकारों को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जनता के साथ सिर्फ धोखा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब से ये सत्ता में आए हैं तब से तीन उपचुनाव हुए हैं, जिसमे दो में हार का सामना करना पड़ा है। एक चुनाव जीते, क्योंकि वो बाहुबली की सीट थी।

उन्होंने कहा, उप-चुनाव तो इनसे जीता नहीं जाता, ये मुझे चुनाव लड़ना क्या सिखाएंगे। 2015 में मैंने इनकी मदद नहीं की होती तो क्या महागठबंधन को जीत हासिल होती? उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि तेजस्वी यादव को राजनीति की कितनी समझ है? 2015 में विधायक बने इससे पहले इनको कौन जानता था? बिहार के जनता ने इनको नहीं चुना है। तेजस्वी के पहली कैबिनेट की बैठक में 10 लाख नौकरी दिए जाने के वादे को याद कराते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि वे कहते थे कि सत्ता में आए तो पहली कैबिनेट में 10 लाख लोगों को नौकरी देंगे अब क्या उनकी पेन टूट गई है या स्याही सूख गई है?

बिहार की अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बात करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि सरकार की नाकामी के वजह से बिहार बर्बाद हो रहा है। आज बिहार के पैसों से गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उद्योग लगाया जा रहा है। बिहार के लोग उन राज्यों में जाकर मजदूरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्यों में पूंजी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी बैंकों की है। उन्होंने कहा कि देश के स्तर पर क्रेडिट डिपोजिट का आंकड़ा 70 प्रतिशत है, और बिहार में यह आंकड़ा पिछले 10 सालों से 25-40 प्रतिशत रहा है। राजद के कार्यकाल में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से भी नीचे था। नीतीश कुमार के 17 साल के कार्यकाल में यह औसत 35 प्रतिशत है जो पिछले साल 40 प्रतिशत था।

उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि बिहार में जो भी पैसा बैंकों में लोग जमा करा रहे हैं, उसका केवल 40 प्रतिशत ही ऋण के तौर पर लोगों के लिए उपलब्ध है। जबकि विकसित राज्यों में 80 से 90 प्रतिशत तक बैंकों में जमा राशि ऋण के लिए उपलब्ध है।