बिहार में गोपालगंज और मोकामा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के परिणाम रविवार को आए। दोनों की प्रतिष्ठा की सीटें थीं। खास बात यह है कि बीजेपी ने जहां गोपालगंज की सीट पर जीत हासिल की और अपनी विधायकी इस सीट पर बरकरार रखी। वहीं मोकामा सीट आरजेडी के प्रत्यााशी ने जीती। इस जीत ने ये बता दिया कि मोकामा में विरोधी पार्टियों की जीत इतनी आसान नहीं है आरजेडी के रहते हुए। यहां अहम बात यह है कि बीजेपी और महागठबंधन दोनों ही उपचुनाव में अपनी अपनी जीत और आने वाले विधानसभा चुनाव से इन जीतों को जोड़कर सत्ता में आने के संदेश दे रहे हैं। लेकिन सही मायनों में यह चुनाव परिणाम दोनों गठबंधनों के लिए न केवल बड़ा संदेश दे रहा है बल्कि किसी को न खुशी मनाने का अवसर दिया न गम मानने का मौका।
जानिए दोनों सीटों पर कैसे रहे हैं समीकरण?
मोकामा में कुछ ऐसा रहा चुनावी रण
2020 के विधानसभा चुनाव से तुलना करें तो उपचुनाव परिणाम में कोई उलटफेर नहीं हुआ। मोकामा में अनंत सिंह 2005 में दो बार के अलावा 2010, 2015 और 2020 का विधानसभा चुनाव जीते। 2005 से 2010 के तीन चुनावों में वे जदयू उम्मीदवार थे। 2015 में निर्दलीय और 2020 में राजद उम्मीदवार की हैसियत से जीते।
अवैध हथियार रखने के आरोप में अदालत द्वारा सजा मिलने के बाद उपचुनाव हुआ और सिंह की पत्नी नीलम देवी चुनाव जीत गईं। हालांकि 2020 के चुनाव में अनंत सिंह जहां 36 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीते थे वहीं उनकी पत्नी की जीत का अंतर 17 हजार के करीब रहा।
गोपालगंज सीट बीजेपी ने जीती, तो महागठबंधन ने बताई यह वजह
गोपालगंज में भी भाजपा के सुबास सिंह 2005 के बाद लगातार चार चुनाव जीते थे। उनके निधन के बाद उप चुनाव में उनकी पत्नी कुसुम देवी जीतीं। हालांकि उनकी जीत का अंतर महज 1794 वोट ही रहा है। यहां से ओवैसी के उम्मीदवार को बारह हजार से ज्यादा वोट हासिल हुए हैं। इसलिए राजद-जदयू खेमा यह प्रचारित करने में जुटा हुआ है कि गोपालगंज की जीत भाजपा की जीत की बजाय मुस्लिम वोटों में एमआईएम की सेंध बड़ी वजह है।
ओवैसी की पार्टी ने बिगाड़ा समीकरण?
वैसे माना यह भी जा रहा है कि राजद के लिए मुस्लिम यादव समीकरण अभेद्य दुर्ग नहीं रहे। परिणाम ने साबित किया है कि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने समीकरण बिगड़ा। चुनाव परिणाम के बाद सभी दल अपने अपने गठबंधन की वाहवाही में जुटे हैं।
हालांकि इस उपचुनाव के रिजल्ट ने यह साफ कर दिया है कि चुनाव जीतने के लिए जातीय समीकरण नहीं, उम्मीदवार का काम और उसके विकास कार्यों से ही उसका आकलन किया जाएगा।